स्वदेश प्रेम |Patriotism
उपर्युक्त कथन अक्षरश: सत्य है। जिस व्यक्ति में स्वदेश प्रेम की भावना नहीं, है वह वास्तव में पत्थर के सदृश है। अपने देश के लिए तन मन और धन से सेवा की भावना ही स्वदेश प्रेम है। अपने देश की उन्नति के लिए प्रयास करने उसकी एकता और अखंडता की रक्षा के लिए कृत संकल्प रहना देश के हितों में सर्वोपरि समझना तथा अपने देश की सुख शांति तथा समृद्धि के लिए प्रयास रत रहना देश प्रेम के सच्चे लक्षण हैं।
जिस व्यक्ति में अपनी मातृभूमि के प्रति अनन्य प्रेम नहीं, वह तो मनुष्य कहलाने के भी अधिकार नहीं है_
स्वामी विवेकानंद ने राष्ट्र सेवा को परम धर्म का का। मातृभूमि की सेवा से विमुख होना कृतघ्नता है क्योंकि देश भक्ति पवित्र सरीला भागीरथी के सदृश है_

देश प्रेम की भावना पर राष्ट्रोंननति की आधारशिला टिकी होती है। जिस देश के निवासियों में देशभक्ति की भावना का निवास नहीं होता, वह पराधीन होकर पतन या यातना के गर्त में गिर जाता है। स्वदेश प्रेम का भाव व्यक्ति को स्व की संस्कृति परिधि से बाहर निकल कर सेवा तयाग तथा कतर्तव्यपरायणता की और बढ़ता है। दुर्भाग्य से आज हमारे देश में देश प्रेम की भावना का अभाव दिखाई पड़ता है।
आजकल देश प्रेम तथा देश भक्ति फैशन सा हो गया है। यह है केवल नारों, जय जयकारों तथा भाषणों में दृष्टिगोचर होता है। हम तो कहते हैं करते नहीं। राजनेता जिन आदर्शों की दुहाई देते हैं उन्हीं को दैनिक जीवन में विस्मृत कर देते हैं। समाज सुधारक तथा धर्मगुरु बनने का ढोंग करने वाले असंख्य लोग जिन नैतिक मूल्यों का ढिंढोरा पीटते हैं, उन्हीं के प्रतिकूल आचरण करते हैं।
गीत यहां राष्ट्र प्रेम के गाए जाते हैं, पर कार्य देश द्रोह के होते हैं। हाल में घटित हुआ 5000 करोड रुपए से भी अधिक का परती भूमि घोटाला तथा चारा घोटाला क्या राष्ट्रद्रोह का उदाहरण नहीं है?
आज सर्वाधिक आवश्यकता इस बात की है कि राष्ट्र हितों पर हमारा स्वार्थ हावी ने हो तथा हमारे संकीर्ण तथा संकुचित भाव हमें देश की प्रति कर्तव्यों का निर्वाह करने से न रोक पाएं।
सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा, मेरा भारत महान, तथा सुजलां सुफलां मलयज शीतलां आदि के उच्चारण का शुभ परिणाम तभी प्रकट होगा, जब हम अपने मानस में देश भक्ति का भावनाओं का विकास करें। स्वतंत्र भारत में भी सांप्रदायिक दंगों, लड़ाई झगड़ा तथा स्वार्थी प्रवृत्तियों की इस प्रबलता को देखकर यह करना नितांत आवश्यक है कि भारतवासी देशभक्ति के सच्चे स्वरूप को पहचाने और राष्ट्रहित की और प्रवृत्त हों।
देश की कई पीढ़ी जिस प्रकार विदेशी संस्कृति की चकाचौंध से गुमराह होकर अपनी संस्कृति तथा संस्कृतिक परंपरा को विस्मृत कर रही है तथा भारतीय आदर्शों से विमुख हो रही है, उसका शीघ्र ही घातक परिणाम मिलेगा, इसलिए आवश्यक है कि इस प्रवृत्ति पर रोक लगाई जाए। आज भी विश्व के अनेक देशों से देशभक्ति की प्रेरणा सहज ही ली जा सकती है।
जापानियों का देश प्रेम विश्वविख्यात है। विश्व के अधिकांश राष्ट्रों की उन्नति का मूल कारण वहां के निवासियों का अपने देश के प्रति उत्कट् प्रेम तथा भक्ति है। यहां के निवासियों में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी है। हमें उन्हीं के अनुसार अपने खोए हुए गौरव को प्राप्त करने के प्रयास करने चाहिए तथा अपने को राष्ट्र प्रेम की पावन गंगा में निमग्न कर देना चाहिए।