महाकवि भूषण जीवन परिचय | Biography of Mahakavi Bhushan
वीर रस के महान कवि भूषण भारतीय संस्कृति के अनन्य भक्त थे। जिससमय भूषण का अवि भार हुआ था उस समय रीतिकालीन कवि सुरेश-सुंदरी के ब्रह्मांड में डूबे बिलासी राजाओं के लिए शृंगारिक रचनाएं रच रहे थे। ऐसे समय में भूषण ने अपनी को जसवी वाणी में राष्ट्रीयता का सिंहनाद किया। उन्होंने शिवजी एवं छत्रसाल की प्रशंसा में राज्य काव्य रचना की और राष्ट्रीयता एवं देश प्रेम के जो भाव जागृत किए वे आज भी लोगों के द्वारा सराहे जाते हैं।

महाकवि भूषण जीवन परिचय
महाकवि भूषण का जन्म कानपुर जिले के टिकवापुर नामक गांव मैं 1670 विक्रमी सन 1613 में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित रत्नाकर त्रिपाठी था भूषण के तीन भाई थे – चिंतामणि, मतीराम और नीलकंठ, जो रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि थे। भूषण का वास्तविक नाम अज्ञात है। महाकवि भूषण की उपाधि उन्हें चित्रकूट के राजा रुद्रराम न प्रदान की थी।पारिवारिक कारणों से महाकवि भूषण गृह त्याग कर दिल्ली में औरंगजेब के दरबार में चले गए थे। वहाँ से वे चित्रकूट के राजा रुद्रराम के दरबार में चले आए और सम्मान प्राप्त किया। इसके बाद वे शिवाजी और महाराजा छत्रसाल के दरबार में रहे। संवाद 1772 सन 1714 मैं इनका देहांत हो गया।
भूषण की प्रमुख रचनाएं हैं –
शिवा भावनी, शिवराज महाकवि भूषणऔर छत्रसाल दशक। शिव बावनी मैं महाराजा छत्रपति शिवाजी के शौर्य अपूर्ण कार्यों का वर्णन है। शिवराज महाकवि भूषणकाव्यशास्त्रीय लक्षण ग्रंथ है, इसमें 105 अलंकारों के लक्षण और उदाहरण दिए गए हैं। अलंकार के लक्षण दोह में है तथा उदाहरण कवित,सवैया, छप्पय अथवा दोनों में है तथा सभी उदाहरण महाराज शिवाजी की प्रशंसा में लिखे गए हैं। प्रशस्त निरूपण में ये इतने लीन हो गए कि कवित्व की रक्षा करने के कारण अलंकार विशेष निरूपण में अधिक सफल नहीं हो सके। छत्रसाल दशक मैं महाराजा छत्रसाल की वीरता, पराक्रम और युद्ध कौशल का वर्णन मिलता है।
हिंदी साहित्य में स्थान
महाकवि भूषण ने राष्ट्रीयता की सशक्त घोषणा अपने काव्य के माध्यम से उस समय की जब अन्य रीतिकालीन कवि बिलासी राजाओं की चतुकारी मैं लगे थे। डॉ हजारीप्रसाद द्विवेदी ने भूषण के विषय में कहा है
प्रेम और विलासिता के साहित्य का ही उन दिनों प्रधान था, उसमें उन्होंने वीर रस की रचना की, यही उनकी विशेषता है।
आचार्य शुल्क ने भूषण को राष्ट्रीय भावना का प्रतिनिधि कवि मानते हुए लिखा है
शिवजी और छत्रसाल की वीरता के वर्णनों को कोई कवियों की झूठी खुशामद नहीं कह सकता।……….इसी से भूषण के वीर रस के उदार सारी जनता के हृदय की संपत्ति हुई।
निश्चय ही माह कवि भूषण का योगदान सराहनीय है। वे सच्चे अर्थों में जनभावना को अभिव्यक्ति देने वाले जनता के सच्चे प्रतिनिधि थे।