भारतेंदु हरीशचंद्र जीवन परिचय | Biography of Bhartendu Harishchandra
भारतेंदु हरीशचंद्र कौन थे? कहां के रहने वाले थे ? आज हम इन सब के बारे में जानेगे…..
भारतेंदु हरीशचंद्र हिंदी गद्दे ही नहीं अपितु आधुनिक काल के जनक कहे जाते हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी भारतेंदु जी ने साहित्य के विविध क्षेत्रों में मौलिक एवं युगांतकारी परिवर्तन किए और हिंदी साहित्य व नवीन दिशा प्रदान की। नवयुग के पर्वत तक भारतेंदु बाबू हरीशचंद्र जी का हिंदी साहित्य काश मैं उदय ने निश्चित ही उस पूर्ण चंद्र की भांति हुआ जिसकी शांत शीतल कांति मई आभा से दिग् धुंए आलोकित होती है।निश्चित ही उनकी उपाधि भरतेन्दु सार्थक एवं सटीक है।
जीवन परिचय
भारतेंदु हरीशचंद्र का जन्म काशी में सन 1850 ई वी में हुआ। इनके पिता गोपालचन्द्र भी एक अच्छे कवि थे और गिरधरदास उपनामशेष बृजभाषा में काव्य रचना करते थे। पांच वर्ष की अवस्था में ही भारतेन्दु के सिर से माँ की ममता का साया उठ गया और 10 वर्ष का होते होते पिता भी चल बसे, अतः आप की प्रारंभिक शिक्षा सुचारू रूप से न चल सकी।
घर पर ही उन्होंने हिंदी, उर्दू, बांग्ला एवं अंग्रेजी भाषाओं का अध्ययन किया और बनारस के क्वींस कॉलेज में प्रवेश लिया, परन्तु काव्य रचना की ओर विशेष रुचि होने के कारण अंत आपने कॉलेज छोड़ दिया। भारतेंदु बाबू हरीशचंद्र जी का विवाह 23 वर्ष की अल्पायु में मंत्रों देवी के साथ हुआ था।
भारतेंदु हरीशचंद्र जी एक प्रतिष्ठित एवं धनाढ्य परिवार से संबंधित थे,, किंतु उन्होंने अपनी संपत्ति उदारता दानशीलता एवं रोप कारी वृत्ति के कारण मुक्तहस्त होकर लुटाई। साहित्य एवं समाज सेवा के प्रति अपूर्ण रूप से समर्पित थे जो भी व्यक्ति इनके पास सहायता मांगने जाता था, उसे खाली हाथ नहीं लौटना पड़ा परिणाम यह हुआ की भारतेंदु बाबू हरीशचंद्र जी ऋणग्रस्त हो गए और क्षयरोग से पीड़ित हो गएअंत इसी रोग के चलते सन 1885 में आप का स्वर्गवास हो गया।
भारतेंदु जी की प्रमुख कृतियों का विवरण निम्न प्रकार है:
- काव्य संग्रह – प्रेमसरोवर,, प्रेम तरंग,, भक्त सर्वस्व ,भारत वीणा,सब्सी श्रंगार, प्रेम प्रलाभ, प्रेम फुलवारी, व्यजयंति आदि।
- कथा साहित्य– हमीर हट, सावित्री चरित्र, कुछ आपबीती कुछ जगबीती आदि।
- निबंध संग्रह – सुलोचना,, परिहास वंचक, लीलावती,, दिल्ली दरबार दर्पण मदालसा
- यात्रा वृतांत -, सरयू पार की यात्रा, लखनऊ की यात्रा।
- जीवनियां– सुरदास की जीवनी।
भाषागत विशेषताएँ
भारतेंदु हरीशचंद्र जी ने कार्य में तो बृजभाषा का उपयोग किया किंतु, उनकी गद्य रचना परीक्षत खड़ी बोली हिंदी में लिखी गई है। उनकी भाषा में अंग्रेजी व उर्दू के प्रचलित शब्दों का प्रयोग हुआ है। साथ ही उसमें लोकोक्तियों एवं मुहावरों का भी प्रयोग किया गया है। उन्होंने भाषा को सरल सहज एवं सुबोध बनाने पर अंकित विशेष ध्यान दिया जिससे वह जन सामान्य की समझ में आ सके। अ़ अलंकारिक शब्द ओके प्रयोग ने आपकी भाषा को सुंदर बनाने में विशेष योगदान दिया है।।
हिंदी साहित्य में स्थान
भारतेंदु हरीशचंद्र जी युग निर्माता साहित्यकार के युग निर्माता के रूप में प्रतिष्ठित रहे हैं वे हिंदी गद्य के जनक के रूप में जाने जाते है।हिंदी भाषा गंध की परिष्कृत भाषा मैं उनका योगदान स्मरणीय रहा है।साहित्य की विविधविधवाओं को प्रारंभ करने मै भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हिंदी को विकसित करने और एक लोकप्रिय भाषा बनाने में तथा विविध गद्य विधवाओं का सूत्रपात कर उन्हें समृद्ध बनाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।