बिहारी जीवन परिचय | Biography of Bihari
रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि हैं। शृंगार रस के सर्वश्रेष्ठ कवियों में बिहार की गणना की जाती है। सब्सी का मूल प्रतिभाग शृंगार रस ही है। उन्होंने 700 से कुछ अधिक दो की रचना की। इन दोनों में भावों का सागर लहराता है। भाषा की समाज शक्ति एवं कल्पना की समाहार शक्ति के बल पर उन्होंने दोहे जैसे छोटे छंद में बड़े बड़े प्रसंगों का समावेश कर दिया है। इसलिए उनके संबंध में यह कहा जाता है कि गागर में सागर भर दिया है। ना सतसई की प्रशंसा करते हुए कहा गया है

जीवन परिचय
महावीर बिहारी का जन्म ग्वालियर के निकट बसुआ गोविंदपुर नामक ग्राम में संबंध 1660 सन(1603) में हुआ था। उनके पिता का नाम केशव राय था। इनका विवाह मथुरा में हुआ था और अपनी युवावस्था में वे ससुराल में ही रहे बाद में कुछ समय आग्रा में रहे और फिर जयपुर के मिर्जाराजा जयसिंह के यहाँ गए। राजा जयसिंग अपनी नव विवाहिता के प्रेम पाश में आबद्ध होकर राजकाल भूल गए थे। बिहारी की एक शृंगारिक अन्योक्ति ने राजा को सचेत कर कर्तव्य पथ पर अग्रसर कर दिया।
इस दोहे ने राजा जयसिंह की आंखें खोल दीं और उन्होंने बिहारी को अपने दरबार में स्थान दिया उसके बाद यहीं रहते हुए बिहारी ने राजा जयसिंह की प्रेरणा से अनेक सुंदर दोनों की रचना की। कहा जाता है कि उन्हें प्रत्येक दोहे की रचना के लिए एक अशरफी स्वर्ण मुद्रा प्रदान की जाती थी। अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद बिहारी भक्ति और वैराग्य की ओर मुड़ गए संवत 1720 में उनकी मृत्यु हो गई।
रचनाएँ
कविवर की प्रसिद्धि का मुख्य आधार उनकी एकमात्र काव्यकृति बिहार सत्सई है। इसमें 719 दोहे है। यह सतसई बिहारी की अनुपम करती है। इसका एक दोहा हिंदी साहित्य का एक एक रत्न माना जाता है बिहारी सतसई का कुशल संपादन बाबू जगन्नाथ दास रत्नाकर ने बिहारी-रत्नाकर नाम से किया ह।
शृंगार रस के ग्रंथों में बिहारी सतसई सर्वोत्कृष्ठ रचना है। शृंगारिकता के अतिरिक्त इसमें भर्ती और नीती के दोहे का भी अद्भुत समन्वय मिलता है। शृंगार संयुक्त उद्योग दोनों पक्षों को चित्रण इस ग्रंथ में किया गया है। डेरी ने यद्यपि कोई रीतिग्रंथ ऋण ग्रंथ नहीं लिखा तो तभी ऋतिक की उन्हें जानकारी थी। काव्यांगों का इस जानकारी का उपयोग उन्होंने अपनी सब सही में किया है इसलिए ऋतिक सिद्ध कवि कहा जाता है।
हिंदी में साहित्य स्थान
हिंदी के सर्वश्रेष्ठ मुक्त कार है मुक्त कविता में जो गुण होना चाहिए वह बिहार के दोनों में चरम उत्कर्ष पर पहुंचा है आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने ग्रंथ हिंदी साहित्य का इतिहास में मुक्तकाव्य के गुणों पर विचार करते हुए लिखा है
इसके लिए कवि को मनोरम वस्तुओं और व्यापारों का एक छोटा-सा त्वक कल्पित कर उन्हें अत्यंत संक्षिप्त और सशक्त भाषा में प्रदर्शित करना पड़ता है। अत्यधिक वि में कल्पना की समाहार शक्ति के साथ भाषा की समाज शक्ति जितनी ही अधिक होगी, उतना ही वह मुक्तक रचना में सफल होगा।
यह क्षमता ।बिहारी के दोहे में विद्यमान है।निश्चय ही रीतिकाल के मूर्धन्य कवि हैं और उनकी बिहारी सतसई हिंदी की सर्वश्रेष्ठ मुक्त रचना है।
मुक्तक रचना के रूप में बिहारी सतसई की विशेषता ओं पर प्रकाश डालिए –
रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि हैं उन्होंने एकमात्र ग्रंथ सतसई की रचना की। जिसमें 700 से कुछ अधिक दोहे है उन्होंने दोहे जैसे छोटे छंद में इतने अधिक भावों का समावेश किया है कि आलोचकों को उनके विषय में यह कहना पड़ा है बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है। हाँ उनकी सोच सही के बारे में यह उक्ति प्राय कही जाती है
एक सफल मुक्तककाव्य की सभी विशेषताएं सतसई में उपलब्ध होती है। मुक्त उस रचना को कहा जाता है जो अपने में अर्थ की दृष्टि से पूर्ण हो और जिसमें पूर्व पर संबंध का अभाव हो। बिहारी सब सही अपनी इन्हीं विशेषज्ञों के कारण लोकप्रिय काव्य-रचना सिद्ध हुई है, संक्षेप में बिहारी की काव्यगत विशेषज्ञों का उद्घाटन निम्न शीर्षकों में किया जा सकता है –
भाषा की समास शक्ति
कम शब्दों में अधिक भाव व्यक्त करने के लिए भाषा की समाज शक्ति का प्रयोग बिहारी ने किया है। बड़े बड़े प्रभु को भी दोहे की दो पंक्तियों में समाविष्ट कर देने में उन्हें सफलता मिली है।गुरुजनों से भरी समूह में नायक-नायिका किस प्रकार आंखो के संकेत से ही वार्तालाप कर लेते है।