पुस्तकालय
जिस प्रकार संतुलित आहार से हमारी देह पुष्ट होती है, उसके उसी प्रकार मानसिक विकास के लिए अध्ययन तथा स्वाध्याय का बड़ा महत्व है। ज्ञान के अभाव में मानव तथा पशु में कोई अंतर नहीं होता। ज्ञान प्राप्त करने के अनेक साधन हैं। इनमें सत्संग, देशाटन तथा सदग्रंथों का अध्ययन है। इन सब ने पुस्तकों को ज्ञान – प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन माना गया है। पुस्तकें ज्ञान-राशि के अथाह भंडारों को अपने में संचित किए रहती हैं।
पुस्तकालय दो शब्दों के योग से बना है-पुस्तक +आलय। इसका अर्थ है-

पुस्तकों का घर। केवल पुस्तकों को एक स्थान पर एकचित्र करने अथवा एक कमरे में भर देने से पुस्तकालय नहीं बन जाता है। पुस्तकालय तो एक ऐसा स्थान है, जिसके उपयोगदि का सुनियोजित विधान होता है।
पुस्तकालय विभिन्न प्रकार के होते हैं। इनमें से प्रथम प्रकार के पुस्तकालय वें हैं, जो विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में विद्वान हैं। दूसरे प्रकार के निजी पुस्तकालय हैं। जिनके स्वामी तथा उपयोग करने वाले प्राय : एक ही व्यक्ति होते हैं।
अध्यापकों, वकीलों, डॉक्टरों, साहित्यकारों, राजनीतिज्ञों तथा अन्य ज्ञान पिपासुओं एवं धनाढ्यों के पुस्तकालय इस श्रेणी में आते हैं। तीसरे प्रकार के पुस्तकालय वगृगत होते हैं-इनका स्वामी कोई संपृदाय या वर्ग होता है। इन पुस्तकालयों का प्रयोग केवल इन्हीं संपृदायों संस्थाओं से संबंधि व्यक्ति कर पाते हैं। चौथे प्रकार के पुस्तकालय सर्वजनिक होते हैं। ये भी प्राय : संस्थागत अथवा राजकीय होते हैं। इनका सदस्य कोई भी हो सकता है। यह भी दो प्रकार के हो सकते हैं-स्थायी एवं चलते-फिरते।
पुस्तकालय के अनेक लाभ हैं। यह ज्ञान का सक्षम भंडार हैं। पुस्तकालय एक ऐसा स्रोत है, जहां से ज्ञान की निर्मल धारा सतत बहती रहती है। रामचंद्र शुक्ल ने ठीक ही कहा है-,, पुस्तकों के द्वारा हम किसी महापुरुष को जितना जान सकते हैं, उतना उनके मित्र क्या पुत्र तक भी नहीं जान सकते।,, एक ही स्थान पर विभिन्न भाषाओं, धर्म, को विषयों, वैज्ञानिकों, अविष्कार उम्र और ऐतिहासिक तथ्यों से संबंधित पुस्तकें केवल पुस्तकालय में हे उपलब्ध हो सकती हैं पुस्तकालय के द्वारा आत्मशुद्धि तथा आत्म परिष्कार कर सकते हैं।
आधुनिक महंगाई और निर्धनता में प्रत्येक व्यक्ति के लिए अधिक ग्रंथों का कृय करना संभव नहीं है। पुस्तकालयों में नाममात्र का शुल्क देकर अनेक ग्रंथों का अध्ययन किया जा सकता है। पुस्तकालय में जाकर हमारा पर्याप्त मनोरंजन भी होता है। यहां हम अपने अवकाश के क्षणों का का सदुपयोग कर सकते हैं
पुस्तकालय सामाजिक महत्व की जगह है। अतः यहां के ग्रंथों को बरबाद नहीं करना चाहिए। पुस्तकें समय पर लौटानी चाहिए। उनके पृषठों को गंदा नहीं करना चाहिए और न ही पृष्ठ फाड़ने चाहिए। काम कर लो पुस्तकालय में बैठकर शांतिपूर्वक अध्ययन करना चाहिए। पुस्तक जहां से निकाली जाती है, अध्ययनोपरांत वही रख दी जानी चाहिए।
आज हमारे देश में अनेक पुस्तकालय हैं, परंतु अभी भी अच्छे पुस्तिकालयों की बहुत कमी है। इस अभाव को दूर करना सरकार का कर्तव्य है। अशिक्षा, निर्धांता, अधिकारियों की अपेक्षा आदि के कारण हमारे देश में पुस्तकालयों की हीन दशा है। पुस्तकालयों का छात्रों के लिए विशेष महत्व है। अच्छे पुस्तकालय राष्ट्र-निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अतः सरकार तथा अन्य संस्थाओं को चाहिए कि अच्छे पुस्तकालयों की स्थापना करें। पुस्तक के महत्व पर लोकमान्य तिलक ठीक ही कहा करते थे-