पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जीवन परिचय | Biography of Padumlal Punnalal Bakshi
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जन्म सन् 1894 में जबलपुर के खैरागढ़ नामक स्थान में हुआ था। इनके पिता पुन्नालाल बख्शी तथा बाबा उमराव बख्शी साहित्य प्रेमी और कवि थे। इनकी माता को भी साहित्य से प्रेम था। परिवार के साहित्यिक वातावरण के प्रभाव के कारण ये विद्यार्थी जीवन से ही कविताएं रचते थे। बी ए पास करते ही उन्होंने सरस्वती में अपनी रचनाएं प्रकाशित करना प्रारंभ किया।
बाद में सरस्वती के अतिरिक्त अन्य पत्र पत्रिकाओं में भी इनकी रचनाएं प्रकाशित होने लगी। इनकी कविताएँ स्वच्छता वादी थी, जिन पर अंग्रेजी कवि वर्डसवर्थ का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है। बख्शी जी की प्रसिद्धि का मुख्य आधार आलोचना और निबंध लेखन है। साहित्य का यह महान साधक सन् 1971 में परलोकवासी हो गया।
साहित्यिक परिचय
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी की गणना द्विवेदी युग के प्रमुख साहित्यकारों में होती है। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी विशेष रूप से अपने ललित निबंधों के लिए स्मरण किए जाते हैं। यह एक विशेष शैली कार के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। उन्होंने जीवन, समाज, धर्म संस्कृति और साहित्य आदि विषयों में उच्च कोटि के निबंध लिखे हैं। यत्र तत्र शिष्ट हास्य व्यंग्य के कारण इनके निबंध रोचक बन पड़े हैं।
बख्शी जीने 1920 से 1927 तक कि बड़ी कुशलता से सरस्वती का संपादन किया। कुछ वर्षों तक इन्होंने छाया मासिक पत्रिका का भी संपादन बड़ी योग्यता से किया। उन्होंने स्वतंत्रतावादी काव्य एवं समीक्षात्मक कृतियों का सृजन किया। निबंध, आलोचनाओं, कहानियों, कविताओं और अनुवादों में इन के गहन अध्ययन और व्यापक दृष्टिकोण की स्पष्ट छाप है।
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी रचनाएँ
बख्शीजी की कृतियों का विवरण इस प्रकार है –
- निबंध संग्रहालय– प्रबंध पारिजात, पंचपात्र, मत धवन, मकरन्द बिंदु, कुछ बिखरे पत्ते आदि।
- कहानी संग्रह– झलमला, अब जली,।
- आलोचना– विश्व साहित्य, हिंदी साहित्य विमर्श, साहित्य शिक्षा, हिंदी उपन्यास साहित्य, हिंदी कहानी साहित्य।
- अनुवाद – प्रायश्चित, उन्मुक्ति का बंधन।
- काव्य संग्रह – शतदल, अंशु दल।
भाषा शैली
बख्शीजी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली है भाषा में संस्कृत शब्दावली का अधिक प्रयोग है। उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है उनकी भाषा में विशेष प्रकार की स्वचालित गति के दर्शन होते हैं। इनकी शैली गंभीर, समीक्षात्मक, भावात्मक, विवेचनात्मक, व्यंग्यात्मक शैली को इन्होंने अपनाया है।।